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तबाही ः किसी ने अपने खोए तो किसी ने सपने
अमर उजाला ब्यूरो
रुद्रप्रयाग/गोपेश्वर। देवभूमि में एकाएक कुपित हुई कुदरत की क्रूरता की मार सही नहीं जाती। किसी ने अपने खोए हैं तो किसी ने सपने। नुकसान इतना बड़ा है कि अंदाजा लगाना नामुमकिन है। भला अपनों और सपनों का कोई मोल आंक सकता है। हर ओर हाहाकार है। अपनों को खोने के गम के साथ ही कहीं से मदद न मिल पाने का गुस्सा है।
बेबसी क्या चीज होती है ममता पार्क सोसायटी कापोदरा सूरत गुजरात के भीम भाई से पूछिए। केदारनाथ आए थे। मौसम खराब हुआ तो पत्नी का कमजोर दिल उसे सह नहीं पाया। दिल का दौरा पड़ गया। आंखों के सामने पत्नी तड़प-तड़प कर दम तोड़ गई। डॉक्टरी मदद नहीं मिली। सूनी आंखों से कहते हैं कि सड़क सही होती और साधन होते तो पत्नी यूं न मरती। दिल्ली के वसुंधरा एन्क्लेव निवासी राधाकृष्ण ने बताया कि उनके परिचित आनंद, शीला और सौम्या केदारनाथ यात्रा पर आए थे, लेकिन 16 की शाम से उनका कोई पता नहीं चल पाया है। आपदा प्रबंधन के सभी नंबर खड़काए कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है।
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देहरादून में अपनों से मिलकर राहत की सांस लेते महाराष्ट्र के श्रद्धालु।
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आंखों के सामने पत्नी ने तड़प-तड़पकर तोड़ा दम
मेरी पत्नी को दिल का दौरा पड़ा। कोई डॉक्टरी मदद नहीं मिली। अगर सड़क सही होती और साधन होते तो मेरी पत्नी यूं न मरती। - भीम भाई, पीड़ित
देवदूत से कम नहीं लगे जवान
करनाल के तीर्थयात्री अमरिंदर सिंह, निरवेद सिंह और अमरजीत ने बताया कि 16 जून को गोविंदघाट पहुंचते ही बारिश शुरू हो गई। वे हेमकुंड साहिब जाने का साहस नहीं जुटा पाए। रात को गोविंदघाट में बदरीनाथ हाईवे की चोटी पर चढ़ गए। 17 जून को भी भूखे-प्यासे जंगल में ही रहे। यहां करीब पांच सौ स्थानीय लोग भी आए। स्थानीय लोगों से बिस्कुट खाकर रात बिताई। 19 जून की सुबह सेना के जवान देवदूत बनकर पहुचे तो जान में जान आई।

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