हिंदी सिनेमा की दस बेहतरीन कॉमेडी फिल्में
रोहित मिश्र
हिंदी सिनेमा के हर दौर में कॉमेडी फिल्में बनती रही। समय के साथ स्टाईल और पैटर्न बदलता रहा। एक विषयगत कॉमेडी फिल्म के रूप में भारत की पहली कॉमेडी फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' मानी जा सकती है। इसके बाद समय-समय पर कॉमेडी फिल्में आती रहीं। समय के साथ कॉमेडी का ट्रेंड भी बदला। हम आपको उन दस कॉमेडी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आल टाइम हिट रहीं।
चलती का नाम गाड़ी (1958)
इस फिल्म में किशोर कुमार के साथ उनके दो भाई अशोक कुमार और अनूप कुमार भी थे। 1958 में रिलीज हुई यह फिल्म अपनी शैली की पहली ऐसी फिल्म थी जिसके विषय में हास्य था। इस फिल्म के पहले फिल्मों में कॉमेडी होती थी पर कॉमेडी फिल्में नहीं बनती थीं। यह एक तरह का पहला प्रयोग था। यह फिल्म कॉमेडी फिल्मों का एक ट्रेंड सेट करने वाली फिल्म बनीं।
पडोसन (1968)
1968 में रिलीज हुई 'पडोसन' फिल्म का ताना-बाना हंसी से भरा हुआ है। यहां हर पात्र अपनी सहज कॉमेडी से लोगों को हंसाता है। पूरी फिल्म अपनी पडोसी लड़की को इंप्रेस करने और उससे प्रेम करने की कहानी चटपटे अंदाज में कहती है। गंवई गेटअप वाले भोले (सुनील दत्त) का दिल उनकी चंचल पडोसी बिंदु (शायरा बानो) पर आ जाता है। बिंदु को गाने का शौक है और उन्हें संगीत सिखाने के लिए मास्टर जी बने महमूद रोजाना आते हैं।
चुपके चुपके (1975)
ऋषिकेश मुखर्जी की यह फिल्म सिचुएशनल कॉमेडी का स्वर्ग है। दर्शक इस फिल्म को देखते वक्त तो हंसते ही हैं फिल्म खत्म हो जाने के बाद भी दृश्यों को याद करके उन पर हंसी आती है। दर्शकों ने इस फिल्म में धर्मेंद्र का एक नया रूप देखा था। प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी बने धर्मेंद अपने स्टाईल से दर्शकों को खूब हंसाते हैं। फिल्म का हास्य अपने चरम पर वहां पहुंचता है जहां अंग्रेजी के प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) परिमल त्रिपाठी बनकर जया बच्चन को बॉटनी पढ़ाते हैं।
गोलमाल (1979)
ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में अमोल पालेकर ने वाकई कमाल कर दिया। अमोल पालेकर ने इस फिल्म में एक नहीं दो किरदार निभाए। एक मूंछों वाला और एक बिना मूंछों वाला। राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद की यह भूमिकाएं अलग-अलग तरीके से दर्शकों को हंसातीं। एक ही व्यक्ति मूंछों के साथ अलग तरह से बिहेव करता और बिना मूंछों के दूसरे तरह से। मजे की बात यह थी कि दोनों की ही अलग-अलग पहचान थी। इस फिल्म का हास्य मूछे लगाकर अभिनय करने और उसके खुलने के डर में छिपा है।
चश्मे बद्दूर (1981)
सई परांजपे निर्देशित यह फिल्म दिल्ली में रह रहे तीन बेराजगार नौजवानों की कहानी कहती है। इन तीनों नौजवानों को एक अदद नौकरी चाहिए होती है। नौकरी से ज्यादा इन्हें जरूरत एक प्रेमिका की होती है। हास्य का ताना-बाना इनकी इसी दूसरी जरूरत के इर्द-गिर्द बुना गया है। इस फिल्म में इन तीन लड़कों का किरदार फारुख शेख, रवि वासवानी और राकेश बेदी ने निभाया।
अंगूर (1982)
गुलजार की यह कॉमेडी अंग्रेजी प्ले 'कॉमेडी ऑफ इरर' पर आधारित था। इस फिल्म का हास्य दो जुड़वा जोड़ियों के हमशक्ल होने की वजह से बनता है। यहां एक जैसे चेहरे वाले दो आदमियों की दो जोड़िया होती हैं। एक जैसे दिखने को लेकर हो रहे इस कन्फ्यूजन के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस फिल्म में हंसी के कई ऐसे मौके आते हैं जब बिना डायलॉग के दर्शक हंसने लगते हैं। संजीव कुमार अपने नौकर बने देवेन वर्मा के साथ उसी शहर में पहुंच जाते हैं जहां पहले से ही संजीव कुमार और देवेन वर्मा की एक जोड़ी पहले से पहले से रह होती है।
अंदाज अपना अपना (1994)
1994 में रिलीज हुई यह फिल्म उस दौर में आयी थी जब कॉमेडी फिल्में बननी लगभग बंद हो गयी थीं। राजकुमार संतोषी की यह फिल्म अपने अंदाज और कॉमेडी की परफेक्ट टाइमिंग से दर्शकों को हंसाती है। उस दौर के दो सुपर स्टार सलमान खान और आमिर खान एक साथ फिल्म में थे। फिल्म में कॉमेडी इन दोनों कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले हवाई प्लान और झूठी बातों से पैदा होती है।
हेराफेरी (2000)
हेरा फेरी को अपने दौर की एक ट्रेंड सेटर फिल्म कहा जा सकता है। प्रियदर्शन की इस फिल्म के बाद फिल्मकारों को जैसे कॉमेडी फिल्म बनाने का कोई नुस्खा मिल गया। खुद प्रियदर्शन इस फिल्म के बाद इसी शैली की कई फिल्में बनायीं। इस फिल्म में अक्षय कुमार, परेश रावल और सुनील शेट्टी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का हास्य नौसिखए लोगों द्वारा किडनैपिंग का एक अधकचरा प्लान बनाकर पैसे कमाने की मानसिकता से उपजता है।
नो एंट्री (2005)
अनीस बज्मी निर्देशित इस फिल्म का हास्य शादी के बाद बनने वाले अफेयर की वजह से शुरू होता है। फिल्म के पात्र अफेयर तो कर लेते हैं पर उसे सही तरीके से हैंडिल न कर पाने की वजह से उनकी हालत बेचारों जैसी हो जाती हैं। फिल्म में अनिल कपूर, सलमान खान और फरदीन खान की तिकड़ी है। डर-डरकर इश्क कर रहे नायक की भूमिका में अनिल कपूर खूब जचे हैं।
क्या कूल हैं हम (2005)
यह एक सेक्स कॉमेडी फिल्म थी। भारत की पहली सेक्स कॉमेडी। इस फिल्म का हास्य द्विअर्थी संवादों से बनाया गया था। अभी तक द्विअर्थी स्टाईल वाले जो संवाद छिप-छिपकर बोले जाते थे इस फिल्म में उनका सरेआम प्रयोग हुआ। संवाद के साथ फिल्म के दृश्यों में भी विषयगत सेक्स कॉमेडी थी। फिल्म के कई दृश्य वाकई हास्य पैदा करते हैं। युवाओं के बीच यह फिल्म खूब लोकप्रिय हुयी
चलती का नाम गाड़ी (1958)
इस फिल्म में किशोर कुमार के साथ उनके दो भाई अशोक कुमार और अनूप कुमार भी थे। 1958 में रिलीज हुई यह फिल्म अपनी शैली की पहली ऐसी फिल्म थी जिसके विषय में हास्य था। इस फिल्म के पहले फिल्मों में कॉमेडी होती थी पर कॉमेडी फिल्में नहीं बनती थीं। यह एक तरह का पहला प्रयोग था। यह फिल्म कॉमेडी फिल्मों का एक ट्रेंड सेट करने वाली फिल्म बनीं।
पडोसन (1968)
1968 में रिलीज हुई 'पडोसन' फिल्म का ताना-बाना हंसी से भरा हुआ है। यहां हर पात्र अपनी सहज कॉमेडी से लोगों को हंसाता है। पूरी फिल्म अपनी पडोसी लड़की को इंप्रेस करने और उससे प्रेम करने की कहानी चटपटे अंदाज में कहती है। गंवई गेटअप वाले भोले (सुनील दत्त) का दिल उनकी चंचल पडोसी बिंदु (शायरा बानो) पर आ जाता है। बिंदु को गाने का शौक है और उन्हें संगीत सिखाने के लिए मास्टर जी बने महमूद रोजाना आते हैं।
चुपके चुपके (1975)
ऋषिकेश मुखर्जी की यह फिल्म सिचुएशनल कॉमेडी का स्वर्ग है। दर्शक इस फिल्म को देखते वक्त तो हंसते ही हैं फिल्म खत्म हो जाने के बाद भी दृश्यों को याद करके उन पर हंसी आती है। दर्शकों ने इस फिल्म में धर्मेंद्र का एक नया रूप देखा था। प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी बने धर्मेंद अपने स्टाईल से दर्शकों को खूब हंसाते हैं। फिल्म का हास्य अपने चरम पर वहां पहुंचता है जहां अंग्रेजी के प्रोफेसर सुकुमार सिन्हा (अमिताभ बच्चन) परिमल त्रिपाठी बनकर जया बच्चन को बॉटनी पढ़ाते हैं।
गोलमाल (1979)
ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में अमोल पालेकर ने वाकई कमाल कर दिया। अमोल पालेकर ने इस फिल्म में एक नहीं दो किरदार निभाए। एक मूंछों वाला और एक बिना मूंछों वाला। राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद की यह भूमिकाएं अलग-अलग तरीके से दर्शकों को हंसातीं। एक ही व्यक्ति मूंछों के साथ अलग तरह से बिहेव करता और बिना मूंछों के दूसरे तरह से। मजे की बात यह थी कि दोनों की ही अलग-अलग पहचान थी। इस फिल्म का हास्य मूछे लगाकर अभिनय करने और उसके खुलने के डर में छिपा है।
चश्मे बद्दूर (1981)
सई परांजपे निर्देशित यह फिल्म दिल्ली में रह रहे तीन बेराजगार नौजवानों की कहानी कहती है। इन तीनों नौजवानों को एक अदद नौकरी चाहिए होती है। नौकरी से ज्यादा इन्हें जरूरत एक प्रेमिका की होती है। हास्य का ताना-बाना इनकी इसी दूसरी जरूरत के इर्द-गिर्द बुना गया है। इस फिल्म में इन तीन लड़कों का किरदार फारुख शेख, रवि वासवानी और राकेश बेदी ने निभाया।
अंगूर (1982)
गुलजार की यह कॉमेडी अंग्रेजी प्ले 'कॉमेडी ऑफ इरर' पर आधारित था। इस फिल्म का हास्य दो जुड़वा जोड़ियों के हमशक्ल होने की वजह से बनता है। यहां एक जैसे चेहरे वाले दो आदमियों की दो जोड़िया होती हैं। एक जैसे दिखने को लेकर हो रहे इस कन्फ्यूजन के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस फिल्म में हंसी के कई ऐसे मौके आते हैं जब बिना डायलॉग के दर्शक हंसने लगते हैं। संजीव कुमार अपने नौकर बने देवेन वर्मा के साथ उसी शहर में पहुंच जाते हैं जहां पहले से ही संजीव कुमार और देवेन वर्मा की एक जोड़ी पहले से पहले से रह होती है।
अंदाज अपना अपना (1994)
1994 में रिलीज हुई यह फिल्म उस दौर में आयी थी जब कॉमेडी फिल्में बननी लगभग बंद हो गयी थीं। राजकुमार संतोषी की यह फिल्म अपने अंदाज और कॉमेडी की परफेक्ट टाइमिंग से दर्शकों को हंसाती है। उस दौर के दो सुपर स्टार सलमान खान और आमिर खान एक साथ फिल्म में थे। फिल्म में कॉमेडी इन दोनों कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले हवाई प्लान और झूठी बातों से पैदा होती है।
हेराफेरी (2000)
हेरा फेरी को अपने दौर की एक ट्रेंड सेटर फिल्म कहा जा सकता है। प्रियदर्शन की इस फिल्म के बाद फिल्मकारों को जैसे कॉमेडी फिल्म बनाने का कोई नुस्खा मिल गया। खुद प्रियदर्शन इस फिल्म के बाद इसी शैली की कई फिल्में बनायीं। इस फिल्म में अक्षय कुमार, परेश रावल और सुनील शेट्टी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का हास्य नौसिखए लोगों द्वारा किडनैपिंग का एक अधकचरा प्लान बनाकर पैसे कमाने की मानसिकता से उपजता है।
नो एंट्री (2005)
अनीस बज्मी निर्देशित इस फिल्म का हास्य शादी के बाद बनने वाले अफेयर की वजह से शुरू होता है। फिल्म के पात्र अफेयर तो कर लेते हैं पर उसे सही तरीके से हैंडिल न कर पाने की वजह से उनकी हालत बेचारों जैसी हो जाती हैं। फिल्म में अनिल कपूर, सलमान खान और फरदीन खान की तिकड़ी है। डर-डरकर इश्क कर रहे नायक की भूमिका में अनिल कपूर खूब जचे हैं।
क्या कूल हैं हम (2005)
यह एक सेक्स कॉमेडी फिल्म थी। भारत की पहली सेक्स कॉमेडी। इस फिल्म का हास्य द्विअर्थी संवादों से बनाया गया था। अभी तक द्विअर्थी स्टाईल वाले जो संवाद छिप-छिपकर बोले जाते थे इस फिल्म में उनका सरेआम प्रयोग हुआ। संवाद के साथ फिल्म के दृश्यों में भी विषयगत सेक्स कॉमेडी थी। फिल्म के कई दृश्य वाकई हास्य पैदा करते हैं। युवाओं के बीच यह फिल्म खूब लोकप्रिय हुयी
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